faiz ahamad faiz की खुबसूरत शायरी और गजल
बसंत और वेलेंटाइन डे के मौके के लिए खुबसूरत गजले
महिना मोहब्बत का
चालू है इसमें आप अपने दिल की बात उर्दू की सबसे महान शायर फैज़ अहमद फैज़ की
खुबसूरत नज्म और शायरी और गजल के साथ अपने दिल की बात अपने हमसफ़र से कहे और अपनी
मोहब्बत का इज़हार करे मोहब्बत के इस महीने में जन्मे फैज़ अहमद फैज़ के कलाम बहुत
खुबसूरत है , आपको फम दिल्ली के इस लेख में है उर्दू के शायर फैज़ अहमद फैज़ की
खुबसूरत नज्मे..
पेश है उनकी एकब बेहद
खुबसूरत नजम जिसे शायद आज से पहले आप ने भी सुना हो शायद|
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग
मैंने समझा था
की तू है तो दरख्शां है हयात
तेरा गम है तो गम ए
दहर का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम
में बहारो को सबात
तेरी आँखों के सिवा
दुनिया में रखा क्या है
तू जो मिल जाए तो
तकदीर निगु हो जाए
यूँ न था फ़क़त में
चाह था यु हो जाए
और भी दुःख है ज़माने
में मोहब्बत के सिवा
राहते और भी है वसल
राहत के सिवा|
दूसरी
गजल...............................
दोनों जहां तेरी
मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब
ए गम गुजर के
वीरा है मय कदा खुम
ओ सागर उदास है
तुम क्या गए की रूठ
गए दिन बहार के
इक फुर्सते ए गुनाह
मिली वो चार दिन
देखे है हम ने हौसले
पार्वर्दिगार के
दुनिया ने तेरी याद
से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल फरेब
है गम रोजगार के
भूले से मुस्कुरा तो
दिए थे वो आज फैज़
मत पूछ वलवले दिल ए
ना कर्दा कार के|
तीसरी
गजल........................
हम पर तुम्हारी चाह
का इल्जाम ही तो है
दुश्राम तो नहीं है
ये इकराम ही तो है
करते है जिस पे
त्तान कोई जुर्म तो नहीं
शौक ए फुजूल और
उल्फत ए नाकाम ही तो है
दिल मुद्दई के हर्फ़
ए मलामत से शाद है
ए जान ए जा ये हर्फ़ तिरा नाम ही तो है
दिल ना उम्मीद तो
नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है गम की शाम
शाम ही तो है
दस्ते ए फलक में
गर्दिश ए तकदीर तो नहीं
दस्ते ए फलक में
गर्दिश ए अय्याम ही तो है
आखिर तो एक रोज
करेगी नज़र वफ़ा
वो यार ऐ खुश खिलास
से ए बाम ही तो है
भीगी है रात फैज़ गजल
इब्तिदा करो
वक़्त ए सरोद दर्द का
हगाम ही तो है|