विदेश नीति क्या होती है इसके मूल तत्व के बारे में जाने 2023?
विदेशी नीति यह शब्द स्वतंत्र देश के लिए उतना ही आवश्यक है जीतनी की उसकी आज़ादी | प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीयता की सुरक्षा के लिए वृद्धि के लिए कुछ नीति निर्धारित करता है वह निति सम्बन्ध अन्य देशो के आचरण तथा उनके साथ संबधो से होता है , विदेश नीति कहलाती है | आज दुनिया के करीब 185 देशो से अधिक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र हैं| इनमे से अधिकतर देश एक दूसरे देशो पर अपनी सुंदरता के आधार पर स्थायी रूप से रहते हैं | और स्थिति की निरंतरता निरंतर जा रही है | इसलिए विदेश नीति के महत्व में वृद्धि आई है
भरत ने स्वतंत्रता के बाद सत्तर वर्ष में सावधानी से निर्मित विदेश नीति के अनुसार अन्य राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों का विकास किया है | उनमें से सबसे सहायक निति रही वो है गुट निरपेक्ष निति | जब शीत युद्ध के समय भारत ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया तो वह समय की कसौटी पर खरी उतरी | जब दुनिया दो शक्तियां रूस और अमेरिका का साथ चुन कर दुनिया को दो हिस्सों में बांट रही थी तब भारत ने गुटनिरपेक्षता निति को बना कर खुद को दोनों गुटों से अलग करके खुद को एक स्वतंत्र देश के रूप में खुद को स्थान दिया और दुनिया के दोनों महाशक्ति देशो के साथ अपना मित्रवत संबंध बनाए रखना और समय के साथ उसे बनाए रखना और विकसित करना | हालाँकि भारत और अमेरिका का संबंध ऐसा नहीं है जैसा कि रूस के साथ है | और अपने पड़ोसी देशो नेपाल, पाकिस्तान, निवास स्थान, श्रीलंका, म्यामार, अफ़गानिस्तान, चीन के साथ संबंध बनाए रखने में भी अहम भूमिका अदा की | भारत एक शांतप्रिय देश है भारत अंतरजातीय प्रश्नों को कार्य समाधान में विश्वास करता है तथा सभी देशों के साथ सहयोग पर बल देता है |
जैसा कि हम सब को सुलभ है की वर्तमान समय में कोई भी राष्ट्र या देश आत्मनिर्भर नहीं है और इन्हीं कारणों से विदेश नीति का महत्वतव दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है |
हम कुछ विद्वानों की राय जाने और समझते हैं विदेश नीति को
"जैसे मोड़ेलेस्की ने विदेश नीति को परिभाषित करते हुए लिखा है कि कोई राज्य अन्य राज्यों के व्यवहार में परिवर्तन के लिए परिवर्तन के लिए और अपनी गतिविधियों को अंतराष्टीय पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए जो उपाय करता है, उन्हें विदेश नीति कहा जा सकता है।
"
लेकिन” ह्यज गिब्सन के अनुसार विदेश निति ज्ञान और अनुभव पर आधारित
एक ऐसी सुनिश्चित और बृहद योजना होती है , जिसके द्वारा किसी सरकार के शेष संसार
के साथ संबंधो का संचालन किया जाता है | इसका उद्देश राष्ट के हितो को प्रोत्सहित
और सुरक्षित करना होता है |”
जबकि “ कोलंबस और वुल्फ का यह मत है कि विदेश निति राष्टीय और राज्यों
के साध्य यानि के राष्टीय हित और साधन यानि के शक्ति और साधन के सामर्थ्य के समनव्य है |
जैसा कि सभी विचारक नेशनल इंटरेस्ट यानि की राष्टहित की बात कर रहे है और उस पर अधिक तवज्जो दे रहे है तो ऐसे में
हमारा विदेश निति को समझने के लिए राष्ट हित यानि कि नेशनल इंटरेस्ट को जान लेना
भी जरुरी हो जाता है कम से कम किसी एक
सवतंत्र देश के नागरिक की हैसियत के लिहाज से भी |
आइये राष्टीय हित के बारे में जाने :
प्रत्येक देश की विदेश निति का मूल उद्देश , या
साध्य , होता है | राष्टीय हित , वास्तव
में समस्त अंतराष्टीय संबधो का आधार है , उनकी कुंजी है , यह कहा जाता है कि
आत्महित राष्टीय निति का न केवल एक मात्र वैध बल्कि मौलिक कारन भी है | अंतराष्टीय
राजनीती के विख्यात विद्वान मांग्रेथाऊ को बीसवी शताब्दी का कौटिल्य माना जाता है
| उसका मानना है कि समस्त राजनीती , शक्ति के लिए संघर्ष मात्र है | उसने लिखा है
कि “ जब तक विश्व राजनितिक रूप से राष्टो
मेंसंगठित है ,जब तक राष्टीय हित निसंदेह विश्व राजनीती का अंतिम शब्द है |
आप इसे ऐसे समझ सकते है कोई भी सरकार देश के राष्टीय हितो के विरुद्ध
कार्य करने का साहस नहीं कर सकती है | कोई भी देश ,चाहे उसके आदर्श कुछ भी क्यों न
हो ,अपनी विदेश निति को राष्टीय हित के अतिरिक्त और किसी भी आधार पर निर्मित नहीं
कर सकता
सौ साल पहले पूर्व लार्ड पॉमस्टर्न ने अपने विचार को प्रकट किया था
कि ,” हमारे न तो कोई सनातन मित्र है और न ही कोई स्थाई शत्रु | केवल हमारे हित
सनातन है , और इन हितो के अनुसार कार्य करना हमारा कर्त्यव है |यह सत्य है |
अंतराष्टीय परिवेश में होने वाले परिवर्तन के साथ साथ राष्टो के मध्य मत्री और शत्रुता
के सम्बन्ध भी बदलते है और सभी राष्ट आत्महितो की अभिवृद्धि
में व्यस्त रहते है | यदि किन्ही दो राष्टो के बीच संघर्ष पैदा होता है तो वे या
तो बातचीत निति की निति को अपना कर
शांतिपूर्ण समाधान कर लेते है या फिर टकराव
की नित को अपना कर युद्ध की ओर चल पड़ते है
जिसका उदहारण आज हम युक्रेन और रुस के युद्ध के रूप में देख सकते है ,भारत
और पाकिस्तान और चीन के संबध हमेसा तनावपूर्ण रहा है |
अमेरिका के पहले राष्टपति जोर्ज वाशिंटन ने एक सार्वभौमिक सत्य की
घोषणा करते हुए कहा था कि किसी भी राष्ट पर , उसके हितो को दूर रख कर भरोसा नहीं
किया जा सकता और कोई भी समझदार नेता या
राजनीतिज्ञ इस सत्य से भटकने का प्रयास नहीं करता |
भारत के प्रधान मंत्री जवाहर
लाल नेहरू ने सन 1947 में
ही सविधान सभा में कहा था कि चाहे
हम किसी भी निति को अपनाये , विदेश निति के संचालन की कला इस बात में है कि हम यह मालूम कर सके कि देश के हितो में क्या ठीक रहेगा ? चाहे
कोई देश साम्यवादी या साम्राज्यवादी हो या
समाजवादी , उसके विदेश मंत्री को यही
सोचना होता है कि देश हित में क्या थी होगा ? कहने का अर्थ यह है की राष्टीय हित
ही विदेश निति का मूल तत्व है | लेकिन कुछ आदर्शवादी नेता ऐसा नहीं मानते | उनका
कहना है कि विश्व शांति पर , राष्टीय हित की अपेक्षा ,अधिक बल देना चाहिए |
अमेरिका के राष्टपति वुडरो विल्सन का कहना था कि विदेश निति को राष्टीय हित में तय
करना खतरनाक बात होगी ..... हमको इस
सिद्धांत से कभी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए कि विदेश निति के निर्धारण में उपोगिता
नहीं बल्कि नैतिकता के आधार पर निर्णय करना चाहिए | यह एक असाधारन विचार है जिससे
की अधिकतर विद्वान सहमत नहीं |
राष्टीय हित का अर्थ क्या है ?
ऊपर पढ़े विचारो को पढ़ने से आपको यह अवश्य ही लगा हो कि राष्टीय हित को समझना एक जटिल काम है और काफी पेचीदा भी जो
कुछ हद सही भी है
“इसका अर्थ है यानि के
राष्टीय हित का अर्थ है कि वे सामान्य
उद्देश जिन को कोई राष्ट पाना या प्राप्त करना चाहता है वह राष्ट्र हित कहा जाता है |”
विचारक बंदोपाध्याय का विचार है कि प्रत्येक राष्ट्र या देश अपनी
राजनितिक स्वतंत्रता और सीमओं की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है | साधन अलग
अलग हो सकते है परन्तु देश की अखंडता की रक्षा करना राष्ट्र ही का सरोपरी उद्देश
होता है | जिसका समर्थन विचारक स्पिकमैंन भी करते है |उसका कहना है की भूमि किसी भी राज्य का अभिन्न अंश है , इसलिए आत्मरक्षा
का अर्थ
है और अपनी भूमि की रक्षा करना है |अधिकतर
आधुनिक राज्य इस बात पर अधिक जोर देते है कि अन्तराष्टीय शांति बनी रही और
अंतराष्टीय कानून का सम्मान हो , अन्तराष्ट्रीय विवादों को शांति पूर्ण रूप से
सुलझाया जा सके |
शक्ति (पॉवर)
जैसा की हमने पाने ऊपर कही हुई बातो में बताया की विदेश निति साध्य
और साधनों का समन्वय है ऐसे में शक्ति हो ही प्रमुख साधन माना जाता है | इसलिए
विदेश निति में शक्ति के अर्थ और महत्तव की संक्षेप में समीक्षा करना आवश्यक हो
जाता है | शक्ति सभी संबधो का मूल आधार होती है | विभिन्न विद्वानों ने शक्ति की
अलग अलग परिभाषाए दी है , पर उन सब परिभाषाओ का सार एक ही है | शक्ति का अर्थ “ वह
योग्यता या समार्थ्य जिसके द्वारा कोई व्यक्ति या राज्य अन्य व्यक्तियों या
राज्यों से वह सबकुछ करवा सके जो वह कारवना चाहता है और वह नहीं चाहता वैसा करने
से अन्य देशो को रोक सके | शक्ति की अवधारणा अंतराष्टीय संबंधो की केन्द्रीय
अवधारणा है |
विदेश निति के निर्धारक तत्व|
किसी भी दश की विदेश निति निर्माण और निर्धारण
में यह बिंदु अहम् भूमिका अदा करते है |
भौगोलिक
प्रस्तिथि
इतिहास और परम्पराव का योगदान
खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधन
राष्टीय एकता और मनोबल
कुशल राजनितिक संगठन
सैन्य सुरक्षा दल
जनमत संग्रह
अंतराष्टीय परिवेश
उम्मीद करता हु कि आपको विदेश निति के मूल आवश्यक तत्व की जानकारी अवश्य ही प्राप्त हुई होगी | अजहर
पूर्व छात्र।
Political science honours (DU)
Public administration( ignou)
(राजनीती विज्ञानं और लोक प्रशसन का भूतपूर्व छात्र)