हिन्दी भारत की राष्ट भाषा या राज्य भाषा है?
राजा
भाषा क्या होती है ?
राज भाषा क्या होती है क्या
आप जानते है ? आप में से अधिकतर लोग शायद जानते ही होंगे क्यूंकि आप लोग किसी न
किसी ऐसे राज्य में रहते होंगे जिसकी अपनी भाषा बोली होती है जैसे पंजाब की पंजाबी , गुजरात की
गुजराती , दिल्ली की हिंदी , हिमाचल की हिमाचली , आदि |भारत के सविधान , अध्याय 17 के अनुछेद
343
में उल्लेखित है | कि संघ की राज भाषा देवनागरी लिपि में लिखी होगी है |
राज भाषा की विशेषता :
राज भाषा की विशेषताओ के सम्बन्ध है उल्लेखनीय है कि उसे विधि द्वारा मान्यता प्राप्त हो , शासन
से जुडी हो और उसकी शब्दावली पारिभाषिक हो
| 14 सितम्बर
1949 को सविधान सभा में हिंदी भाषा को राज भाषा घोषित किया गया था |
a राज भाषा के रूप में हिंदी भाषा की विकास हो |
b सविधान के शुरू से अंग्रेजी राजा भाषा के रूप
में आगामी 15 सालो तक चलती रहे |
c हिंदी के विकास सम्बंधि
प्रयासों से अन्य भारतीय भाषाओ की उपेक्षा
न हो |
भारतीय सविधान के 343 से 351 तक राजभाषा से सम्बन्ध है , जिसमे अनुछेद 343 बहुत महत्त्वपूर्ण है | इसके भाग 1
में लिखा है
“संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी | संघ के प्रशासकीय
प्रयोजनो के लिए प्रयोग होने वाले अंको का रूप भारतीय अंको का अंतर्राष्ट्रीय रूप
होगा |”
सवाल यह उठता है क्या इन 75 सालो में क्या ऐसा हो पाया ? क्यूंकि
अखबार और समाचार में हम भाषा को लेकर दक्षिण और पुर्वीय राज्यों में हिंदी को लेकर
कुछ न कुछ विवाद जरूर देखते ही है |
लेकिन भारतीय सविधान की कुछ अनुछेद हिंदी भाषा को लेकर क्या कहते है
इसे भी जाने |
अनुछेद 344 में कहा गया की राजभाषा हिद्नी का प्रयोग को बढ़ावा देने के
लिए किये गए कार्यो का लेखा जोखा राष्टपति सविधान लागू होने के 15 साल बाद करेंगे |
और हर 10 साल के बाद एक आयोग का गठन होगा | जिसका काम राजभाषा हिंदी के
प्रयोगात्मक रूप को बढ़ावा देना होगा | इस सन्दर्भ में आयोग महामहीम राष्टपति अपनी सिफारिशे
पर्स्तुत करेंगे |
अनुच्छेद 345 राज्य की भाषाओ से जुड़ा है अर्थात यदि कोई राज्य 15
वर्ष की अवधि में अपनी प्रांतीय भाषा को राज्य भाषा के कार्यो के लिए स्वीकार कर लेता है , तो वंहा वन्ही भाषा लागू हो जाएगी |अन्यथा
उसे हिंदी भाषा को ग्रहण करना होगा |
अनुच्छेद 346 में इस बात को सपष्ट किया गया की अन्तरराष्ट्रीय स्टार
पर कौन सी भाषा का प्रयोग होगा ? यह राज्य
सवय ही निश्चित करेगा |अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें हिंदी का ही प्रयोग करना होगा |
अनुच्छेद 347 में ऐसी वव्स्था की गई है कि यदि किसी राज्य को अधिकांश
लोगो द्वारा कोई भाषा बोली जाती है और राज्य द्वारा उसके मान्यता की मांग की जाती
है तो राष्टपति निर्देश दे सकते है |
अनुच्छेद 348 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयो की भाषा से
सम्बंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है | कि जब तक हिंदी अंग्रेजी का स्थान नहीं लती
तब तक उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी होगी | उच्च न्यायालय की मांग पर उस राज्य
की भाषा के प्रयोग की अनुमति राज्यपाल द्वारा दी जा सकती है |
अनुच्छेद 349 के अनुसार राष्टपति की पूर्व सम्मति से संसद राज भाषा सम्बन्धी
अधिनियम आवश्यकता अनुरूप बना सकती है |
अनुच्छेद 350 में संघ या राज्य का कोई भी पदाधिकारी या प्राधिकारी , संघ या राज्य में
प्रयुक्त होने वाली किसी भाषा में अभाय्वेदन दे सकता है |
अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए विशेष निदेश दिए गए है | इस अनुच्छेद के अनुसार हिंदी भाषा की प्रसार
वृद्धि करना , उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संसकृति के सब तत्वों की
अभिव्यक्ति का माष्यम हो सके तथा उसकी आत्मीयता में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी
और अष्टम अनुसूची में उल्लेखित अन्य भारतीयों भारतीयों भाषाओ के रूप शैली और
पदावली को आत्मसात करते हुए तथा जन्हा आवश्यक या वांछनीय हो वंहा उसके शब्द भंडार
के लिए मुख्यतया संसस्कृति से तथा गौणत
अन्य भाषाओ से शब्द ग्रहणं करते हुए उसके समृधि सुनिश्चित करना संघ का कर्तव्य होगा
| इसके आलावा अनुच्छेद 120 और 210 भी राज भाषा से सम्बंधित है |