शहजादी नूर। शाहजादी नूर। हिंदी कहानी। हिंदी कहानी।।
बहुत समय पहले खुदा नाम का एक नगर था। जहां एक बादशाह को दो शाहजादी थी दोनो ही बहुत खूबसूरत और जहीन थी। उनकी खूबसूरती के चर्चे पूरे नगर में थे, उनमें से जो छोटी शाहजादी थी वो तो मानो कोई चांद का टुकड़ा हो और दूध सी खूबसूरती तिखे नक्श नैन, बड़े बड़े गोल गोल आंखे जो देखते तो बस देखते ही रह जाएंगे। तितली सी चंच और हंसती तो लगता है मानो किसी ने कोई मधुर संगीत की धुन छेड़ दी हो और रूई से भी लोक बदन दुनिया जहान की सबसे खूबसूरत और खुद की बनाई हुई सबसे नायाब कलाकारी। बड़े शाहजादी का नाम सिमर छोटा शाहजादी का नूर था। बादशाह बहुत ही खुशमिजाज और नेक दिल था। महल के हर कोने में बस उन दोनों राजकुमारियों की चंचलता से पूरा महल मानो किसी खुशियों का खजान हो। महल का कोई भी इंसान अगर उनसे दो पल भी बात कर ले तो मानो उन पलों में अपनी सबसे अच्छी पल जी ली हो।
उनकी चर्चा न केवल उस नगर में बल्कि आसपास के नगरों में भी खूब थी। खुदा नगर से करीब 100 मील दूर एक नदी बह रही थी। नदी से कुछ ही दूरी पर तूर नाम का एक पहाड़ था। पहाड़ की सुंदर छटा बस देखते ही बनती थी, चारो तरफ हरियाली और पहाड़ से पूरा सुंदर पहाड़ की चोटिया को बन गया। अपनी आगोश में ले गया था। और उस पहाड़ पर राजा नौमान का महल था नौमान खुबाद के बादशाह जिब्रान दोनो अच्छे दोस्त थे। पर नौमान ने खुदाब नगर में केवल दो बार ही क़दम रखा था। पहली बार जब बाद में वह शाह जिब्रान को युद्ध में सहायता देने के लिए राजा जिब्रान की और से लड़ाई हुई थी, तब शाह नौमान बेहद शक्तिशाली और तकतवार बादशाह थे। उसके सामने दूर तक का कोई भी राजा उससे लड़ने की तो दूर सपने में भी उसका सामना करने की कभी ताकत न करता था। और दूसरी बार बादशाह जिब्रान की शादी में, तबसे आजतक शाह नौमान ने कभी खुदा नगर की जमीन पर अपना पैर नहीं रखा। एक लंबा समय गुजर चुका था। और बाद में शाह जिब्रान के दोनो शहजादियो ने उमर के बिसवे ब्लिट्ज में कदम रखा था।
एक रात शाहजादी नूर अपने महल के बागीचे में आधी रात को चहलकदमी कर रही थी। रात को आकाश में अचानक से एक हलचल सी हुई और ऐसा लगा कि कोई रोशन ग्रैंड से आया शाहजादी के बागीचे में गिरी तो रानी रोशनी के पीछे भागी तो लड़के कुछ न दिखा। शाहजादी दुर्घटना उद्र चारो तरफ अपना बड़ा बड़ा गोल गोल आंख को दौड़ते हुए देख रही थी उन्हें कुछ न दिखा केवल सामने से किसी तोते की आवाज आई और वह मिठ्ठू मिठ्ठू बोले। शहजादी सफेद थी में कोई परी लग रही थी। शहजादी बड़ी चंचता से आवाज की ओर लपकी तो क्या कहते हैं कि एक शरमाते रंग का एक तोता उनके सामने वाले पेड़ की डाल पर स्थिति पर कायम शाहजादी नूर शाहजादी नूर कह कर गड़बड़ कर रही थी। शाहजादी को बड़ा ताज्जुब हुआ ?की एक तोता बुराई कैसे इंसान की आवाज में बात कर सकता है और वह पेड़ के करीब आ गया। उन्होंने पूछा तोते तुम्हारा मेरा नाम कैसे पता ?तोता बोला मैं तो इस पूरे नगर का नाम जनता हु फिर आपके नाम को अच्छा कैसे नहीं जानुगा ? कुछ देर की बात करते करते वह तोता एक शहजादे में छा गया और देखकर शाहजादी को बड़ी हैरत हुई। शहजादी ने पूछा सच सच बताओ कि तुम कौन हो ? और ऐसे बार खुद को कैसे बदल सकते हैं ?कभी तोता तो कभी शहजादा? शहजादे ने जवाब दिया शहजादी मेरा नाम कौन है और मैं एक जिन्न हूं। और मैं रात को आकाश में लहूलुहान हो गया था कि मैंने अचानक एक सफेद चीज अपनी ओर खींची और जब मैं इस चीज के पास आया तो उसने देखा कि तुम निकल गए। मुझे देखकर आपके रिश्ते में आपके रिश्ते में अप्सरा गलतियां हो गई हैं और जैसे ही मैंने खुद को इतनी नायाब कलाकारी निगाहों से बनाया है तो बस आपका दीवाना हो गया। मुझे आप पसंद आ गए हैं ।और आप देख कर है कि शाहजादी नूर लगता है अगर खुदा ने नूर से कुछ खूबसूरत बनाया है तो वो है आप। जिन्न की बात कहना मानो शाहजादी धीरे-धीरे उसका प्यार डूबते जा रहा हो और यूं ही बाते करते करते भोर के 4 बज गए तो जिन्न ने शाहजादी से अपने लोगों की आज्ञा ली और कल का वादा करके वह अपना लोक वापस चला गया। लेकिन उसे शहजादी अच्छा नहीं लगा। शाहजादी उसकी प्यारी बातो में इस तरह खोई की बस वह अब हर पल उसी के ख्यालों में रहने लगी।देखते ही देखते वह रोशनी एक खूबसूरत शाहजादे में रोशन हो गई।
शहजादी नूर ने इतनी खूबसूरत शहजादे को देखकर अपना दिल हार गई और उनकी बात में ऐसी खोई की उन्हें प्यार कर बैठी और शहजादे ने धरती पर इतनी खूबसूरत शहजादी को देखा तो वो उनका दीवाना हो उठा और उनके प्यार में ऐसी पागल हुई की वह अपने जनता को छोड़कर शाहजादी के साथ रहने के लिए तैयार हो गए। शहजादे ने कहा कि मैं अभी जाता हूं और काल रात उसी समय वापस आ जाओ अपने दीदार के लिए, शाहजादी नूर ने एक पल को सोचा कि शहजादे को रोक ले पर फिर ख्याल आया कि वह उसे रखेंगे कान्हा?
इसलिए शाहजादी ने काल उसी समय फिर यात्रा का वादा लेकर शाहजादे को विदा कर दिया। और जब अगली सुबह वो जागी तो वह शहजादे को अपने करीब न पाकर थोड़ा ओझल हो गया। लेकिन मिलने का वादा तो था वह सज संवर कर रात के होने का इंतजार करने लगा और हर पल बस रात कब महल के हर नौकर से मांगी गई उनकी किसी चीज में मन नहीं लग रहा था और इंतजार का पल इतना भारी लग रहा था मानो किसी साल महिनो में धीरे-धीरे बदल रहा हो और शहजादी से ये इंतजार नहीं कर रहा था। पर वो कर भी क्या सकता है छोड़कर इंतजार के लिए उस शहजादे से मिलने के लिए वो जिन्न लोक तो जा नहीं सकता था। तो बस इंतज़ार ही करना उनका पास था। जिन्न कोनैन दूसरी रात फिर उसी समय महल के बाग में आया तो रानी नूर को इंतजर करता देख बड़ा ही खुश हुआ कि कोई इतनी बेताबी और बेसब्री किसी का इंतजर कैसे कर सकता है। उसने रानी नूर को सलाम किया और रानी नूर ने सलाम का जवाब देते हुए उसे देखते हुए बिना बोले ही अंगीनत प्रश्न कोनन की दिशा में