How to write a radio show script? 2023 hindi me?
एक रेडियो कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट कैसे लिखे?
Radio : fm delhi
Subject :Faiz ahamad faiz
Radio
jockey: rj ali
City
: delhi
MUSIC………
RADIO JOCKEY: अस्सलाम वालेकुम सम्यीन हजरात खैर
मकदम है आपका, आप है फम डेल्ही पर,, जन्हा हम हाजिर होते उर्दू के तहजीबनुमा लहजे
और अंदाजे बयान के साथ जन्हा आपकी अपनी प्यारी जुँबा उर्दू आपको एक खुबसूरत और
रूमानियत अहसास देती और इस सफ़र के साथी है उर्दू के महान शायर पत्रकार और अपने देश
की आजादी में अपना योगदान देने वाले साहब जिन्होंने आधुनिक उर्दू को दुनिया में वो
मुकाम दिलाया जिसे लोग आज दुनिया की सबसे मीठी जुबान के नाम से जानते है, हमारे इस खुबसूरत सफ़र के साथी है उर्दू के अज़ीम
शायर फैज़ अहमद फैज़ साहब.............
MUSIC…
पेश है उनकी एकब बेहद
खुबसूरत नजम जिसे शायद आज से पहले भी सुना हो शायद|
मुझसे पहली सी मोहब्बत
मेरे महबूब न मांग subject
मैंने समझा था की तू है तो दरख्शां है हयात
तेरा गम है तो गम ए दहर का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में
बहारो को सबात
तेरी आँखों के सिवा
दुनिया में रखा क्या है
तू जो मिल जाए तो तकदीर
निगु हो जाए
यूँ न था फ़क़त में चाह था
यु हो जाए
और भी दुःख है ज़माने में
मोहब्बत के सिवा
राहते और भी है वसल राहत
के सिवा|
RADIO JOCKEY: यह मेरी पसंदीदा नज्म में से एक है कुछ लोग फैज़
साहब और उनकी शायरी और उनके अंदाज़े बयान से वाकिफ होंगे और जिन्हें उर्दू से
मोहब्बत है उन्हें फैज़ क्यूँ न हो ,जो फैज़ साहब के अंदाज़े
बयान से क़किफ नहीं है मै उनको आज उनका तारुफ़ करवा देता हु| फैज़ साहब की शायराना
कद्रो कीमत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की उनका नाम ग़ालिब और इकबाल जैसे
महान शायरों के साथ लिया जाता है| उनकी शायरी ने उनके
ज़िन्दगी में ही सरहदों जबानो ख्यालातो और मजहबी मान्यतो की सरहदों को तोड़ते हुए
विश्वव्यापी ख्यति हासिल कर ली थी| आधुनिक उर्दू शायरी को
अन्तराष्टीय पहचान उन्ही की बदौलत हासिल हुई| उनकी दिलकस आवाज़ दिल को
छू लेने वाले इंकलाबी गीत और शोषण के खिलाफ
विरोध के तरानों की शकल में अपने युग के
इन्सान और उसके जमीर की प्रभावी आवाज बनकर उभरती है|
हम पर्वरिश ए लौह ओ कलम
करते रहेंगे
जो दिल पर गुजरती है रकम
करते रहेंगे|
म्यूजिक.............
13 februry 1911 को पंजाब के जिला नारोवाल में की एक छोटी सी
बस्ती कला कादिर जिसे अब फैज़ नगर के नाम से जानत जाता है के एक समृद्ध शिक्षित
परिवार में पैदा हुए| उनके वालिद मुहम्मद
सुलतान खान पेशे से बैरिस्टर थे| फैज़ साहब ने अपनी
शुरुआती तालीम पूर्वी ढंग से शुरू की और उन्होंने कुरान के दो पारे हिफ्ज कर लिए
याने की याद कर लिए| फिर अरबी फारसी के साथ
अंग्रेजी तालीम पर भी तवज्जो दी गई| फैज़ ने अंग्रेजी और अरबी
में ऍम ए की डिग्रियां हासिल की गवर्मेंट कॉलेज लाहोर में तालीम के दौरान फलसफा और
अंग्रेजी उनके विशेष सब्जेक्ट थे | तलिम्मात मुकम्मल करने के
बाद सन 1935 में फैज़ ने अमृतसर के मोहम्मडन ओरिएण्टल कॉलेज में बतौर
लेक्चरर मुलाजमात कर ली| 1941 में फैज़ साहबन ने एलिज कैथरीन जौर्ज से शादी की ये तासीर के
बेगम की छोटी बहन थी जो 16 साल की
उम्र से बर्तानवी कम्युनिस्ट पार्टी से ताल्लुक रखती थी तासीर फैज़ के दोस्त थे जो
कॉलेज में मुलाजमत के दौरान दोस्त बने| शादी के समरोह का आयोजन
श्रीनगर में तासीर के घर पर किया गया था | निकाह शेख अब्दुल्लाह ने
पढाया | मजाज और जोश मलीहाबादी ने भी समारोह में शिरकत
की|
इस खुबसूरत लम्हे पर मै
आपको फैज़ की एक और खुबसूरत नजम नजर करता हूँ.......
दोनों जहां तेरी मोहब्बत
में हार के
वो जा रहा है कोई शब ए गम
गुजर के
वीरा है मय कदा खुम ओ
सागर उदास है
तुम क्या गए की रूठ गए
दिन बहार के
इक फुर्सते ए गुनाह मिली
वो चार दिन
देखे है हम ने हौसले
पार्वर्दिगार के
दुनिया ने तेरी याद से
बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल फरेब है गम
रोजगार के
भूले से मुस्कुरा तो दिए
थे वो आज फैज़
मत पूछ वलवले दिल ए ना
कर्दा कार के|
सफ़र का सिलसिला जारी है
मेरे आपके और फैज़ साहब की बेहतरीन शायरी और गजलो के साथ....
म्यूजिक
सन 1947 में फैज़ साहब ने मियां
इफ्तिखार उद्दीन के दरख्वास्त पर उनके अखबार पाकिस्तना टाइम्स में प्रधान संपादक
के ओहदे के साथ काम शुरू किया और सन
1951 फैज़ की ज़िन्दगी में
मुश्किलात और शायरी में निखार का पैगाम लेकर आया | फैज़ साहब को हुकूमत का तख्ता उलटने की साजिश में गिरफ्तार कर लिया गया जिसे
रावलपिंडी केस साजिश भी कहते है, मामला कुछ यूँ था कि
लियाक़त अली खान ने अमेरिका की तरफ उनके झुकाओ और कश्मीर की पाने की ख्वाहिश में
उनकी नाकामी की वजह से फ़ौज के बहुत से अफसर उनसे नाराज थे जिनमे मेजर जर्नल अकबर
खान भी शामिल थे | अखबर खान फ़ौज में फैज के
आला अफसर थे| 23 फरवरी 1951 को अकबर खान के माकन पर
एक मीटिंग हुई जिसमे कई फौजी अफसर के साथ फैज़ और सज्जाद ज़ाहिर ने भी मीटिंग में
शिरकत की | मीटिंग में हुकूमत का तख्ता पलटने का पर्स्ताव
पेश किया गया लेकिन उसे अव्यव्हारिक करते हुए रद्द कर दिया गया| लेकिन फौजियों में’ से ही किसी ने हुकूमत को
खुश करने के लिए यह बात जर्नल अय्यूब खान तक पहुंचा दी | उसके बाद मीटिंग में शिरकत करने वालो को बगावत के इल्जाम में ग्रिफ्तार कर
लिया गया| लगभग पांच साल उन्होंने पाकिस्तान की अलग अलग
जेलों में गुजारे|
उन्होंने ने 1954
me रावलपिंडी के
मोंटगोमेट्री की जेल में एक गजल लिखी थी जो मै आपको पेश कर रहा हूँ...............
हम पर तुम्हारी चाह का
इल्जाम ही तो है
दुश्राम तो नहीं है ये
इकराम ही तो है
करते है जिस पे त्तान कोई
जुर्म तो नहीं
शौक ए फुजूल और उल्फत ए
नाकाम ही तो है
दिल मुद्दई के हर्फ़ ए
मलामत से शाद है
ए जान ए जा ये हर्फ़ तिरा नाम ही तो है
दिल ना उम्मीद तो नहीं नाकाम
ही तो है
लम्बी है गम की शाम शाम
ही तो है
दस्ते ए फलक में गर्दिश ए
तकदीर तो नहीं
दस्ते ए फलक में गर्दिश ए
अय्याम ही तो है
आखिर तो एक रोज करेगी नज़र
वफ़ा
वो यार ऐ खुश खिलास से ए
बाम ही तो है
भीगी है रात फैज़ गजल
इब्तिदा करो
वक़्त ए सरोद दर्द का हगाम
ही तो है|
2nd episode
MUSIC………
RADIO JOCKEY: अस्सलाम वालेकुम सम्यीन हजरात खैर
मकदम है आपका, हमारे साप्ताहिक शो दिल
की आवाज में , आप है फम डेल्ही पर,आपके अपने होस्ट एंड दोस्त रज अली के साथ, जन्हा हम हाजिर होते उर्दू के तहजीबनुमा लहजे
और अंदाजे बयान के साथ जन्हा आपकी अपनी प्यारी जुँबा उर्दू आपको एक खुबसूरत और
रूमानियत अहसास देती और हमारे इस सफ़र के साथी है उर्दू के महान शायर पत्रकार और अपने देश
की आजादी में अपना योगदान देने वाले साहब जिन्होंने आधुनिक उर्दू को दुनिया में वो
मुकाम दिलाया जिसे लोग आज दुनिया की सबसे मीठी जुबान के नाम से जानते है, हमारे इस खुबसूरत सफ़र के साथी है उर्दू के अज़ीम
शायर फैज़ अहमद फैज़ साहब.............फैज़ अहमद फैज़ के इस सफ़र पर हम दूसरे एपिसोड के साथ हाजिर है फिर
एक दफा आपके दरमियाँ..................
MUSIC…
महिना फरवरी का है और इशक
में डूबा बसंत और पेड़ो पर लगे रंग बिरंगे फुल महीने की खूबसूरती में चार चाँद लगा
रहे है, ये हल्की गुनगुनी धुप और गुलाबी सुबह, इश्क के मीठे से अहसास को जन्म देती है, धरती पर चारो तरफ खेत के
मैदानों में खड़े पेड़ पौधों पर खिलखिलाते फुल और इठलाता गेंदा मुश्कुरा अपनी और
बुलाता है ऐसे में आप इशक में कूद ही पड़ते है और अपने अहसास को उर्दू में पिरो कर
गुफ्तगू करते है उस खिलखिलाते गेंदा से जो कुछ दिनों में मुरझा जाने वाला है, चलिए प्यार के इस सफ़र को यूँही जारी रखते है सफ़र के इस
पड़ाव में मै आपको फैज़ साहब की लिखी एक नज्म सुनाता हु .....................उसके बाद हम सफ़र पर आगे चलते है......
म्यूजिक.......
गुलो में रंग भरे बाद ए
नौ बहार चले
चले भी आओ के गुलशन का
कारोबार चले
कफस उदास है यारो सबा से
कुछ तो कहो
कंही तो बहर ए खुदा आज
जिक्रे यार चले
चले भी आओ के गुलसन का
कारोबार चले.......
कभी तो सुबह तीरे कुञ्ज ए
लब से हो आगाज
कभी तो शब् सर ए काकुल से
मुश्क बार चले
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये
दिल गरीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे
गम गुसार चले
चले भी आओ के गुलसन का
कारोबार चले.....
जो हम पे गुँजरी सो गुजरी
मगर शबए हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी अकिबत
सवार चले
हुजुर ए यार हुई दफ्तरे
जुनू की तलब
गिरह में ले के गरेबा का
तार तार चले
चले भी आओ के गुलशन का
कारोबार चले.......
मकाम फैज़ कोई राह में जचा
ही नहीं
जो कू ए यार से निकले तो
सू ए दार चले
चले भी आओ के गुलशन का
कारोबार चले
यह नज्म भी फैज़ साहब ने
जेल में रहते हुए ही लिखी थी| और आखिरकार अप्रैल 1955 में उनकी सजा माफ़ हुई| रिहाई के बाद वो लन्दन चले गए|और फिर कुछ समय वंहा
गुजारने के बाद सन 1958 वापस पाकिस्तान आये| लेकिन जेलखाना उनका फिर
इन्तजार कर रहा था | सिकंदर मिर्जा की हुकूमत
ने कमुनिस्ट साहित्य प्रकाशित करने और बाटने के इल्जाम में उनको फिर गिरफ्तार कर
लिया| इस बार उनको अपने प्रसंसक जुल्फिकारअली भुट्टो
की कोशिशो के नतीजे में सन 1960 में रिहाई मिली और वो पहले मोस्को और फिर वंहा
से लन्दन चले गए| सन 1962 में उन्हें लेनिन शांति
पुरस्कार मिला| लेनिन पुरस्कार मिलने के
बाद से फैज़ की शोहरत में इजाफा हो गया अभी तक हिंदुस्तान और पाकिस्तान तक महदूद
उनकी शख्सियत साडी दुनिया खासकर सोवियत ब्लाक के देशो तक फ़ैल गई| उनकी शायरी के अनुवाद विभिन्न भाषाओ में होने लगे और उनकी
शायरी पर शोध शुरू हो गया|
चलिए सफ़र के इस पड़ाव पर
मै आपको फैज़ की लिखी एक और खुबसूरत नज्म आपकी नजर करता हूँ..................
नसीब अजमाने के दिन आ रहे
है,
करीब उनके आने के दिन आ
रहे है|
जो दिल से कहा है जो दिल
से सुना है
सब उनको सुनने के दिन आ
रहे है|
अभी से दिल ओ जा सर ए राह
रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ
रहे है|
टपकने लगी उन निगाहों से
मस्ती
निगाहे चुराने के दिन आ
रहे है|
सबा फिर हमें पूछती फिर
रही है
चमन को सजाने के दिन आ
रहे है|
चलो फैज़ फिर कंही दिल
लगाए
सुना है ठिकाने के दिन आ
रहे है|
उम्मीद है आपको उर्दू का
यह सफ़र पसंद आ रहा होगा...... सन 1964 में फैज़ पाकिस्तान वापस
आये और कराची के मुकीम हो गए|इसके आलावा’ भी जुल्फिकार अली भुट्टो ने उनको खूब खूब नवाजा और कई अहम्
ओहदे दिए जिनमे में संस्कृति मंत्रालय के सलाहकार का पद भी शामिल था |जब 1977 में जर्नल जियाउल हक ने भुट्टो का तख्ता उल्टा
तो फैज़ के लिए पाकिस्तान में रहना नामुकिन हो गया| एक दिन वो हाथ में
सिगरेट थम कर घर से यूँ निकले जैसे चहल कदमी के लिए जा रहे हो और वो सीधे बेरुत
पहुँच गए| उस वक़्तफिलस्तीन संस्था की स्वतंत्रता आन्दोलन
का केंद्र बिंदु बेरुत में था और यासिर याराफत से उनका यारां था , बेरुत में वह
सोवियत सहायता प्राप्त पत्रिका लोटस के संपादक बना दिए गए| 1982
में अस्वस्थता और लेबनान
के युद्ध के कारन फैज़ पाकिस्तान वापस आ गए, वो दमा और ब्लड प्रेशर के
मरीज थे | san 1964 में अदब के नोबेल पुरस्कार के लिए उनको नमकित किया गया था लेकिन किसी फैसले से
पहले 20 novmber 1984 में उन्होंने दुनिया को अलविदा अख दिया |
सफ़र के इस लम्हे में मै
आपको फैज़ साहब की एक बेहद खुबसूरत नजम नजर करता हु.....
हम मुशाफिर यु ही मसरुफे
सफ़र जाएंगे
बे निशा हो गए जब शहर तो
घर जाएंगे
किस कदर होगा यंहा मेहर ओ वफ़ा का मातम
हम तेरी याद से जिस रोज उतर
जाएंगे
जौहरी बंद किए जाते है
बाजार ए सुखन
हम किसे बेचने अल्मसो
गुहार जाएंगे
नेमते जिस्ट का ये कर्ज
चुकेगा कैसे
लाख घबरा के ये कहते रहे
हम मर जाएंगे
शायद अपना भी कोई बैत
हुंदी ख्वा बनकर
साथ जायेगा मिरे यार जिधर
जाएंगे
फैज़ आते है रह ए इशक में
जो सखत मकाम
आने वालो से कहो हम तो गुजर जायेगे|
3RD EP
RADIO JOCKEY: अस्सलाम वालेकुम सम्यीन हजरात खैर
मकदम है आपका, हमारे साप्ताहिक शो दिल
की आवाज में , आप है फम डेल्ही पर,आपके अपने होस्ट एंड दोस्त रज अली के साथ, जन्हा हम हाजिर होते उर्दू के तहजीबनुमा लहजे
और अंदाजे बयान के साथ जन्हा आपकी अपनी प्यारी जुँबा उर्दू आपको एक खुबसूरत और
रूमानियत अहसास देती और हमारे इस सफ़र के साथी है उर्दू के महान शायर पत्रकार और अपने देश
की आजादी में अपना योगदान देने वाले साहब जिन्होंने आधुनिक उर्दू को दुनिया में वो
मुकाम दिलाया जिसे लोग आज दुनिया की सबसे मीठी जुबान के नाम से जानते है, हमारे इस खुबसूरत सफ़र के साथी है उर्दू के अज़ीम
शायर फैज़ अहमद फैज़ साहब.............फैज़ अहमद फैज़ के इस सफ़र पर हम तीसरे एपिसोड के साथ हाजिर है फिर
एक दफा आपके दरमियाँ..................
कल फैज़ साहब का जन्म दिन
था और उसके खास अवसर पर हमरा यह आज का दिन है फैज साहब के नाम .......
सफ़र की शुरु आत से पहले
आपको फैज़ साहब की लिखी एक खुबसूरत नज्म नजर करता हु.......
शैख़ साहब से रस्म ओ राह न
की
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न
की |
तुझ को देखा तो सेर चश्म
हुए
तुझको चाह तो और चाह न की
|
तेरे दस्त ए सितम का इज्ज
नहीं
दिल ही काफ़िर था जिसने आह
न की|
थे शबे हिज्र काम और बहुत
हमने फ़िक्र ए दिल तबाह न
की|
कौन कातिल बचा है शहर में
फैज़
जिससे यारो ने रस्मो राह
न की|
उम्मीद है आपको यह नज्म
पसंद आई होगी .........
फिर हरीफ ए बहार हो बैठे
जाने किस किस को आज रो
बैठे|
थी मगर इतनी रायेगा भी न
थी
आज कुछ ज़िन्दगी से खो
बैठे
तेरे दर तक पहुँच के लौट
आये
इश्क की आबरू डुबो बैठे|
साडी दुनिया से दूर हो
जाए
जो जरा तेरे पास हो बैठे |
न गई तेरी बेरुखी न गई
हम तेरी आरजू भी खो बैठे
फैज़ होता रहे जो होना है
शेर लिखते रहा करो बेठे|
उम्मीद है आपको फैज़ साहब
की लिखी गजले पसंद आ रही होंगी
हसरत ए दीद में गुजरा है
जमाना कब से
दश्त ए उम्मीद में गर्दा
है दीवाने कब से|
देर से आंख पे उतरा नहीं
अश्को का अजाब
अपने जिम्मे है तेरा कर्ज
न जाने कब से|
किस तरह पाक हो बे आरजू
लम्हों का हिसाब
दर्द आया नहीं दरबार
सजाने कब से|
सर करो सजा कि छेड़े कोई दिल सोज गजल
ढूडता है दिल ए शोरीदा
बहाने कब से|
पुर करो जाम की शायद हो
इसी लहजा रवा
रोक रखा है जो इक तीर कजा
ने कब से
फैज़ फिर कब से किसी मकतल
में करेंगे आबाद
लब पे वीरां है शहीदों के
फ़साने कब से|