Who is qafir in hindi? जाने इस्लाम के अनुसार काफिर किसे कहते है?
काफिर
कौन है ?
इमान
क्या है ? ऐसे ढेरों सवाल आपके जेहन में यक़ीनन
कौतुल कर रहे होंगे | आज हम अपने
इस लेख में ऐसे ही ढेरों सवालों के जवाब जानेगे | सबसे पहले हम ईमान क्या है से
शुरू करते है ?
ईमान
क्या है ?
ईमान
यह है कि अल्लाह व उसके रसूल की बताई तमाम बातों का यकीन करे और दिल से उन्हें सच
जाने | अगर किसी ऐसी एक बात का भी इनकार है , जिसके बारे में यकीनी तौर पर मालूम
है कि इस्लाम की बात है तो यह कुफ्र है |
जैसे
क़यामत , फ़रिश्ते , जन्नत , दोजख , हिसाब को न मानना
, या नमाज ,रोजा ,हज, जकात को फर्ज न समझना या कुरान को अल्लाह का कालाम न समझना |
काबा , कुरान या किसी नबी की तौहीन करना ,
या किसी सुन्नत को हल्का समझना | शरियत के हुकम का मजाक उड़ना और ऐसी ही इस्लाम की
किसी मालूम व मशहूर बात का इनकार करना या इसमें शक करना यक़ीनन कुफ्र है |
इस्लाम में कयामत की निशानिया क्या है?
क्या
आपको इस बात का इल्म है की मुसलमान होने के लिए क्या जरुरी है ?
मुसलमान
होने के लिए आपको ईमान के साथ ऐतक़ाद और अल्लाह और उसके रसूल की बातो का इकरार भी होना
जरुरी है | जब तक कोई मजबूरी न हो | मसलन मुह से बोली न निकती हो , या जबान से कहने में जान जाती हो | तो वक़्त जबान
से इकरार करना जरुरी नहीं | बल्कि सिर्फ जबान
से खेलाफे इस्लाम बात भी जान बचाने के कह सकता है | लेकिन न कहना ही अच्छा है और सवाब है | इसके सिवा जब कभी जबान से कलमाए
कुफ्र निकलेगा वह काफिर ही समझा जायेगा | अगर यह कहे कि खाली जुबान से कहा है दिल
से नहीं |
इसी तरह कुछ और बाते जो कुफ्र की निशानी है | जब
उनको करेगा तो काफिर समझा जाएगा | जैसे जनेऊ डालना , जटा रखना , सलीब लटकाना यह सब
काफ़िर की निशानियो में शुमार होगा | मुसलमान होने के लिए इतना काफी है कि सिर्फ दीने
इस्लाम को ही सच्चा मजहब माने | नमाज ,रोजा, हज वगैराह अमाल के तर्क से गुनाहगार
समझा जायेगा | लेकिन मोमिन रहेगा | इसलिए
की अमाल ईमान में दाखिल नहीं |
अकीदा
: जो चीज बे शुबहा हराम हो उसको हलाल जानना और जो यक़ीनन हराम है उसे हलाल
जानना कुफ्र है | हराम और हलाल होना मालूम और मशहूर हो या शख्स
उसको जनता हो |
शिर्क
: शिर्क के माने अल्लाह के सिवा किसी और को खुदा जानना और इबादत के लायक समझना |
यह कुफ्र की सबसे बदतर किस्म है |
अकीदा
: कबीरा गुनाह करने से मुसलमान काफ़िर नहीं हो जाता | बल्कि वह गुनाहगार होता और मुसलमान
ही रहता है |
अकीदा
: मुसलमान को मुसलमान जानना और काफ़िर को
काफ़िर जानना जरुरी है | किसी खास आदमी के काफ़िर होने या मुसलमान होने का यकीन उस
वक़्त तक नहीं किया जा सकता | जब तक शरई दलील से खात्मा का हाल मालूम न हो जाए कि
कुफ्र पर मरा या इस्लाम पर मरा |
अकीदा
: कुफ्र और इस्लाम के सिवा कोई तीसरा दर्जा नहीं | आदमी या तो मुसलमान होगा या फिर
काफिर होगा |ऐसा नहीं कि न काफ़िर हो न मुसलमान हो बल्कि दोनों से एक जरुर होगा |
बिदअत
: जो बात रसूलुल्लाह से साबित न हो वह बिदअत है और यह दो किस्म की होती है | एक
बिदअत हसना दूसरी बिदअत साईफ
मीजान
क्या है ?
मीजान
: मीजान हक है , यह एक तराजू होगी इसके दो पल्ले होंगे और इस पर लोगो के अच्छे
बुरे अमल तौले जायेंगे |
सेरात
क्या है ?
सेरात
: सेरात हक है , यह एक पुल है जो जहन्नम के ऊपर होगा , यह बाल से भी ज्यादा बारीक
और तलवार से भी ज्यादा तेज होगा | जन्नत का यही रास्ता है सबको इस पर चलना होगा |
काफिर न चल सकेगा और जहन्नम में जायेगा | जिसके जितने अच्छे अमल होंगे वह उतनी ही
आसानी से इसे पार कर सकेगा |
होजे
कौसर क्या है ?
होजे
कौसर : यह हक है जो हमारे नबी मोहम्मद साहब को दिया गया है | उसकी लम्बाई एक महीना
का रास्ता है , और उतनी ही उसकी चौड़ाई है | उसके किनारे सोने के है जिसका पानी दूध
से भी ज्यादा सफ़ेद और शहद से भी ज्यादा मीठा है | जिसको यह नसीब होगा वह कभी फिर
प्यासा न होगा |
मकामे
महमूद क्या है ?
मकामे
महमूद : अल्लाह अपने प्यारे नबी को यह मक़ाम देगा जन्हा अगले पिचले सब आपकी बड़ाई
बयाँ करेगे और आपकी तारीफ में लगे रहेंगे |
लेवा
उल हम्द क्या है ?
लेवा
उल हम्द: यह एक झंडा है जो प्यारे रसूल मोहम्मद मुस्तफा सल्लाह अलैह वसल्लम कोक़यामत
के दिन मिलेगा | जिसके नीचे हजरत आदम अल्लैहिस्सलाम
से लेकर जितने भी मुसलमान हुए और नबी ,वली सब ही इस झंडे के तले जमा होंगे |
इस जानकारी ने आपके दिमाग में उपज रहे कुछ सवालों के जरूर दिए होंगे?