प्रयागराज, अल्लाहाबाद, तीर्थराज, संगम और भी न जाने कितने नामो से जाने वाला यह शहर उत्तर प्रदेश का गौरव है, नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री विश्व नाथ प्रताप सिंह जैसे देश के प्रधानमंत्री इसी शहर गोद से निकले| खैर मैं आपको अपनी यात्रा का छोटा सा किसा आप से साझा करने के लिए इस लेख के माध्यम से सांझा कर रहा हूं
यह जो तस्वीर आप देख रहे हैं, यह इलाहाबाद स्टेशन के बताए नंबर पांच की है, लेकिन आपको क्या पता है? कि इसका गढ़ा लाइन के नाम से भी जाना जाता है| जब मैं यंहा सुबह दिल्ली प्रयागराज दुरंतो एक्सप्रेस से सुबह में चार्टर्ड नंबर छह पर पंहुचा और मुझे अल्लाहाबाद (जो अब प्रयागराज कर दिया है) से मिर्ज़ापुर के लिए यात्री ट्रेन पकड़नी थी तो मैंने कुली साहब से राबता दिया| जो सीधे तौर पर बुजुर्ग समझ में आ रहे थे और मैंने उनसे पूछा कि मुझे मिर्जापुर के लिए पैसेंजर ट्रेन पकड़नी है, तो उन्होंने मुझसे कहा कि गदाहा लाइन से पकड़ लो | उनके मुह से यह वाक्य सुनकर फिल्म मखिला कर हस पड़ा और मैं उनसे पूछता हूं तो वो वह मिख से झल्लाये लेकिन वे मुझे मेरी इस जिलखिला पर गुस्सा करने की बजाय उसके पीछे बताते हैं कि दास्तान की जहमत की, उन्होंने मुझे बताया कि प्लेट फॉर्म नंबर पांच से यह पैंजर मिलेगा और इसी को गदहा लाइन कहते थे| मैं यह सुनकर थोड़ा हैरान था कि किसी खास को मैंने पहले कभी इस नाम से तो सुना नहीं था| तो मैंने उनसे पूछा कि यह सुबह आएगी तो उन्होंने बताया कि वह सुबेदारगंज से चलकर आ रही होगी और यह कभी-कभी विशिष्ट नंबर चार तो कभी पांच पर साझेदारी है। तभी घोषणा हुई की सुबेदारगंज से चलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जाने वाली पैसेंजर ट्रेन नंबर पांच पर दस मिनट देरी से आएंगे|
आइए जानते है क्यूँ
पड़ा इसका नाम गदहा लाइन?
ट्रेन के लेट आने की वजह से अब मेरे पास टाइम था तो मैंने
कुली साहब के साथ चलते-चलते इस नाम के पीछे का कारण पूछा तो उन्होने बताया कि बहुत
समय पहले ऊंचाहार एक्सप्रेस प्लेटफ़ॉर्म नंबर पांच से ही चलती थी| अंग्रेजो के
ज़माने में इस प्लेटफ़ॉर्म से जानवरों को ढ़ोने का काम भी किया जाता था| तब उस समय के
मालवाहक जानवर गधे और खच्चर को इसी प्लेटफ़ॉर्म से ढ़ोने का काम किया जाता था| तभी
से यह प्लेटफ़ॉर्म आम बोलचाल भाषा में गदहा लाइन के नाम से चर्चित हो गया| हालकी अब
यह प्लेटफ़ॉर्म नंबर पांच के नाम से जाना जाता है| और इसके ठीक सामने जो प्लेटफ़ॉर्म
दिख रहा है, यह कभी ग्यारह नंबर प्लेटफ़ॉर्म हुआ करता था जो अब प्लेटफ़ॉर्म नंबर छह
के नाम से जाना जाता जंहा आपको दिल्ली से आने वाली सुपर फ़ास्ट ट्रेने मिलेगी और
आपको यंहा से सिविल लाइन जाने के लिए आसानी से साधन मिल जायेंगे|
पहले से अब यह स्टेशन बहुत खूबसूरत हो गया है, और मुझे बचपन से ही रेलवे स्टेशन की वो अन्नौस्मेंट बहुत पसंद है, यात्रीगण कृपया ध्यान दें, गाड़ी संख्या फला नंबर, प्लेटफॉर्म नंबर से, दिल्ली से चलकर वाया दारी के रास्ते इलाहाबाद को जाने वाली यह आवाज हम सभी को कितनी ही पसंद है, मुझे यह आवाज बहुत खुश करती है आज भी और जब बच्चा था तब भी| यह मेरी दिल्ली से प्रयागराज की यात्रा की छोटी सी घटनाओं में से एक है| साथ ही सीक्रेट नंबर एक पर बने लाइन शाह बाबा के मजार के पीछे भी एक बड़ा रोचक सा किस्सा है| जो फिर कभी आपके साथ साझा करूंगा हालांकि जो अल्लाह से है वो लोग शायद इस किस्से वाकिफ हो|
आपको यह कैसे लगा ? आपको जो जानकारी इस बारे में बताई गई थी उससे पहले आप सब संगम नहाने के लिए ही जा रहे होंगे इन दिनों माघ पूरा होता है प्रयागराज में |