Where is delhi Urdu bazar? दिल्ली का उर्दू बाज़ार किताबो की जगह खाने की दुकाने में बदल रही है।
भारत की राजधानी
दिल्ली के जमा मस्जिद के ठीक बगल वाले बाज़ार जिसका नाम उर्दू बाज़ार है, जो गेट
नंबर की तरफ है ये बाज़ार पहले भी जमा मस्जिद की रौनक था और आज भी है लेकिन यंहा
तब्दीली ये हो चली है की दुनिया की सबसे मीठी जुबान उर्दू के किताबो का यह बाज़ार
अब कंही गुम होता जा रहा है| क्या लोगो को अब उर्दू से और तहजीब से मोहब्बत नहीं
रही?
दाग,मीर तकी मीर
,बहादुर शाह जफ़र अमीर खुसरो,ख्वाजा मीर दर्द,मोमिन खान मोमिन,नजीर अकबराबादी,शेख
इब्रहीम जौक,मिर्ज़ा ग़ालिब की दिल्ली अब आधुनिक दिल्ली हो चुकी है दरिया गंज की
सड़को पर दौड़ती गाड़ियाँ लोगो का हुजूम, और बाजारों में भरी रौनके इतिहास तो देखती
है, लेकिन उसे वन्ही मरता छोड़कर चली जाती है |मै भी कल दिल्ली के जामा मस्जिद के
आगन में बैठा लोगो को बादशाह शाहजहाँ की इस मस्जिद को देखकर लोगो को हैरतजदा होते
देखा | देखा की लोगो देश के दिल्ली और भारत के
दूसरे कोने से बादशाह शाहजहाँ के इस मस्जिद को देखकर खुद के मुसलमान होने पर
गरूर महसूस कर रहे थे| वह मस्जिद के आगन में बनी हौज में वजू करके खुश भी नजर आ
रहे थे और अल्लाह के इस इबादतगाह में एक बार ख़ुशी से नमाज अदा जरुर कर रहे थे| और
अल्लाह को ख़ुशी के साथ की गई अपने बन्दों की इबादत भी खूब पसंद आती है | बादशाह
शाहजहाँ ने इतिहास की गोद में न जाने कितने ही गलत काम किए हो लेकिन यह नेक काम
करके वह खुदा के बन्दों का भला कर गए और शायद इस में वह अपने लिए भी नेकी के
रास्ते खोल गए| और देखा की दूसरे देश से आये शैलानी कैसे इस मस्जिद को एक हैरत की
निगाह से देखते है और वह इसपर बनी कारीगरी
के मुरीद हो जाते है|
उर्दू बाज़ार जो कभी
उर्दू की किताबो और उर्दू के शायरों की
शायरी से कभी भरा होता था आज वह ख़त्म होता जा रहा है जो की हैरत जदा लोग जिस तरह
से आधुनिक दिल्ली के आदि हो रहे है वह एक दिन जरुर उर्दू के होने पर सवालिया निशान
खड़ा कर देगी अब इन किताबो की बंद होने के
साथ साथ लोग उर्दू को भी खुद से अलग करने
लगे है | कम से कम एक समय को तो ऐसा लगता ही है| जिस तरह से उर्दू किताबो
की दुकाने उर्दू बाज़ार से गायब हो रही है और उनकी जगह खाने की दुकाने ले रही और
लोग अब उर्दू की जगह बिरयानी , चगेजी, कोरमा , निहारी,
मुर्ग-मुसल्लम, और तमाम लजीज खाने के शौक़ीन अब ज्यादा हो रहे है| ऐसा लग रहा है
लोग अब उर्दू जुबान की जगह उर्दू ज्याके में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे है | जो
उर्दू भाषा के लिए अब खतरे की घंटी बजती दिख रही है|
उर्दू बाजार कितना
पुराना है?
यह बाजार काफी
पुराना और आज़ादी से पहले का है मैंने कंही पढ़ा था 1937 के आसपास इस बाजार को फिर से बसाया गया था| कि
यह जन्हा के उर्दू के तमाम लेखको की किताबे दुनिया भर में यंही से जाती थी और जो
किताबे उर्दू की कंही नहीं मिलती थी वह यंहा मिलती थी और उर्दू के शायर और लेखक ने
इस बाज़ार में अपना एक कीमती हिस्सा खर्च किया है| लेकिन अब यह दुकाने खाने पीने की
दुकानों में बदलती जा रही है क्यूंकि उर्दू के कदरदान कम हो चले है किताबो के
दुकानदार ये कहना है लोगो अब पढ़ने की जगह खाने के ज्यादा शौक़ीन हो गए तो लोग अब बिरयानी
कोरमा और निहारी और सिरमाल की दुकाने खोजते है| यहाँ की दुकाने दिन रात खुली रहती
है और बाजार में रौनक बनी रहती है|
उर्दू बाज़ार की
खासियत |
इस बाज़ार की खासियत
यह है की यह हमेशा अपने कदरदानो की हाजरी में हाजिर रहता है आप दिल्ली के इस बाज़ार
में किसी भी पहर आये यह खुला रहता है अपनी सेवा के लिए और पहले यह उर्दू किताबो के
लिए जाना जाता था लेकिन अब यह शैलानी के ठहरने और खाने के लिए अब मशहूर है| इस
बाज़ार की सड़क सीधा जमा मस्जिद को यमुना नदी से जोडती है धीरे धीरे खाने की दुकानों
में बदलती यंहा की दुकाने अब भी किताबो के लिए ही जानी जाती है |