फैज अहमद फैज।
आज हम अपने इस लेख में उर्दू जुबान के बेहद ही खास शख्सियत फैज़ अहमद फैज़ के बारे में बात करने वाले है। जिनकी कलम ने उर्दू जुबान को एक नई बुलंदी और पहचान दी। जो नौजवानों के दिलो पर आज भी राज करती है। अगर आप उर्दू और शायरी से प्यार करते हैं तो आप फैज़ अहमद फैज़ से भी उतना ही प्यार करते होंगे जितना कि अपने महबूब से।
फैज अहमद फैज (Faiz Ahmed Faiz) पाकिस्तान के प्रमुख उर्दू कवि और समाजवादी काव्यकारी थे। उनका जन्म 13 फरवरी 1911 को सियालकोट, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था और उनकी मृत्यु 20 नवम्बर 1984 को कराची, पाकिस्तान में हुई।
फैज अहमद फैज का कविता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और उन्होंने अपनी कला के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को उजागर किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
"नुसरत" (Nusrat): फैज की प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वे प्रेम और समाज के मुद्दों पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
"मिर्ज़ा ग़ालिब" (Mirza Ghalib): इस कविता में उन्होंने मशहूर उर्दू कवि मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में रचा है।
"हम देखेंगे" (Hum Dekhenge): यह कविता उनकी सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है, लेकिन मुझे उनकी बेहद खास ग़ज़ल पसंद है । "वो है गुलो में रंग भरे।" जिसके कुछ लाईन आपके सामने है।
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले
हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले
मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
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