"हिन्दी कविता रश्मि रथी।"
रामधारी सिंह दिनकर, जिनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था, एक प्रमुख भारतीय कवि और नाटककार थे। उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न काव्य, नाटक, और कहानी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएं:
"रागदरबारी" (1930) - इस काव्य कृति में वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए उत्साहित करने वाले कविताएं लिखे थे।
"रश्मिरथी" (1952) - यह काव्य उनकी महाकाव्य कविता है, जिसमें वे भगवान राम के चरित्र को अत्यंत गर्मभाव से चित्रित किया।
"सुधाकान्ति" (1964) - एक औपनिषदिक मूलकवि काव्य है, जो धर्म, मानवता, और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर आलोचनात्मक विचार करता है।
रामधारी सिंह दिनकर ने अपने योगदान से हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और उन्होंने भारतीय समाज के मुद्दों पर गहरा विचार किया। उनकी कविताएं और रचनाएं आज भी पठनीय हैं और उनके योगदान को सम्मान दिया जाता है।
और आज मैं आपको उनकी बहुत ही प्रसिद्ध कविता "रश्मि रथी" का कुछ अंश लेकर हाजिर हु जो मुझे काफ़ी पसंद है।
"हिंदी कविता रश्मि रथी।"
हो गया पूर्ण अज्ञात वास,
पाडंव लौटे वन से सहास,
पावक में कनक-सदृश तप कर,
वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,
नस-नस में तेज-प्रवाह लिये,
कुछ और नया उत्साह लिये।
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुख से न कभी उफ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके वीर नर के मग में
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।
पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,
झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार,
बनती ललनाओं का सिंगार।
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं.