रामधारी सिंह दिनकर ।
भारत और भारतीयों की वेदनाओ और उनके जीवन के उतार चढ़ाव को अपने कलम पर शब्दो के बाण चढ़ा कर पूरे उनके जीवन चक्र और घटनाओं का सुंदर और सजीव चित्रण करने वाले एक मात्र हिंदी के होनहार कवि रामधारी सिंह दिनकर जी के बारे में आप थोड़ा बहुत अपनी पुस्तकों और अखबारों के लेखों से चिर परिचित अवश्य ही होंगे। लेकीन आज हम उनके बारे में थोड़ी और मालूमात हासिल करेंगे। आओ रामधारी सिंह दिनकर को पढ़े।
रामधारी दिनकर, भारतीय साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में गंगा-यमुना की सरस्वती को बोल, भाषा को अपनी माता माना और उन्होंने हिन्दी साहित्य को नई दिशा दी। उनकी कविताएं जीवन, प्रेम, और प्राकृतिक सौंदर्य के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं।
ये हैं कुछ सुंदर रचनाएँ:
राष्ट्रीय एकता - इस कविता में वे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता की महत्वपूर्ण भावना को छूने का प्रयास करते हैं।
संस्कृति और समृद्धि - उनकी कविता "राम कथा" में वे भारतीय संस्कृति के महत्व को उजागर करते हैं और उसकी समृद्धि के लिए प्रेरित करते हैं.
मनसी - रामधारी दिनकर की एक अद्भुत महाकाव्य, "मनसी," जिसमें वे भारतीय इतिहास और धर्म के महत्वपूर्ण किस्से और गाथाएं प्रस्तुत करते हैं।
मुझे जो बेहद पसन्द है वो रचना है। "लोहे के पेड़ हरे होंगे।" के कुछ अंश जो काफी प्रभावित करते है,मुझे।
लोहे के पेड़ हरे होंगे,
तू गान प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर,
आँसू के कण बरसाता चल।
सिसकियों और चीत्कारों से,
जितना भी हो आकाश भरा,
कंकालों क हो ढेर,
खप्परों से चाहे हो पटी धरा ।
आशा के स्वर का भार,
पवन को लेकिन, लेना ही होगा,
जीवित सपनों के लिए मार्ग
मुर्दों को देना ही होगा।
रंगो के सातों घट उँड़ेल,
यह अँधियारी रँग जायेगी,
ऊषा को सत्य बनाने को
जावक नभ पर छितराता चल।
आदर्शों से आदर्श भिड़े,
प्रज्ञा प्रज्ञा पर टूट रही।
प्रतिमा प्रतिमा से लड़ती है,
धरती की किस्मत फूट रही।
आवर्तों का है विषम जाल,
निरुपाय बुद्धि चकराती है,
विज्ञान-यान पर चढी हुई
सभ्यता डूबने जाती है।
जब-जब मस्तिष्क जयी होता,
संसार ज्ञान से चलता है,
शीतलता की है राह हृदय,
तू यह संवाद सुनाता चल।
सूरज है जग का बुझा-बुझा,
चन्द्रमा मलिन-सा लगता है,
सब की कोशिश बेकार हुई,
आलोक न इनका जगता है,
इन मलिन ग्रहों के प्राणों में
कोई नवीन आभा भर दे,
जादूगर! अपने दर्पण पर
घिसकर इनको ताजा कर दे।
दीपक के जलते प्राण,
दिवाली तभी सुहावन होती है,
रोशनी जगत् को देने को
अपनी अस्थियाँ जलाता चल।
क्या उन्हें देख विस्मित होना,
जो हैं अलमस्त बहारों में,
फूलों को जो हैं गूँथ रहे
सोने-चाँदी के तारों में।
मानवता का तू विप्र!
गन्ध-छाया का आदि पुजारी है,
वेदना-पुत्र! तू तो केवल
जलने भर का अधिकारी है।
ले बड़ी खुशी से उठा,
सरोवर में जो हँसता चाँद मिले,
दर्पण में रचकर फूल,
मगर उस का भी मोल चुकाता चल।
काया की कितनी धूम-धाम!
दो रोज चमक बुझ जाती है;
छाया पीती पीयुष,
मृत्यु के उपर ध्वजा उड़ाती है ।
लेने दे जग को उसे,
ताल पर जो कलहंस मचलता है,
तेरा मराल जल के दर्पण
में नीचे-नीचे चलता है।
रामधारी दिनकर ने भारतीय साहित्य को एक नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया और उनकी रचनाएँ आज भी प्रसिद्ध हैं और लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। उम्मीद है आपको यह पसन्द आई होगी।
इन्हें भी देखें.
क्या आप इस्लाम के तीसरे खलीफा उमर फारूक के बारे में जानते है ?
भारतीय लोक सभा के सदस्य और सांसदो के बारे में आप कितना जानते हैं? आइए जाने।