Lucknow की बेगम शम्सुन निशा की कहानी। किस्सा लखनऊ की बेगम shmasun nisha का।
आपने पिछली लेख में बेगम उम्मत उल जहरा उर्फ बहु बेगम का किस्सा सुना था।चलिए आज आपको लखनऊ के एक ओर बेगम साहिबा का का किस्सा सुनाते है,जिनका नाम samsaun nisa था और नादान महल बेगम से जानी गई।
सास की नवाबी में मिल्कियत और मालिकाने खुशबू थी तो बहु की नवाबी में मासूमियत और अनजानेपन का रंग भी कुछ कम न था। नवाब आसफुद्दौला की पहली शादी दिल्ली के दीवान खानदान इमामुद्दीन खां उर्फ इम्तियाज उद्दौला की बेटी शम्सुन निशा से हुई थी।
सन 1766 में इस शादी में केवल सिर्फ 24 लाख रूपये खर्च हुए थे और वो भी उस जमाने में जब रूपये का 30 सेर गेहूं मिला करता था। इस ब्याह में शिरकत करने के लिए दिल्ली के बादशाह शाह अलम और बेगम शोलापुरी भी आई थी।
शम्सुन निशा लखनऊ के दौलतखाना शीशमहल में सात परदों में रहने वाली बेगम थी।नवाब साहब से उनकी अधिक नहीं बनी। इसलिए वो महल के दायरे में इस कदर बंध कर रह गई।के उन्हें बाहरी दुनिया की कोई खबर ही नहीं थी। वह इतनी भोली और नादान थी कि उनके जैसा नादान महल बेगम अवध में मिलना मुश्किल होगा।
उनको ये तक न मालूम था कि गेहूं दरख़्त पर उगते है या फिर खानों से बरामद होते है। मियां दरबार अली खां ख्वाजासरा ,जो लखनऊ के एक मोहल्ले सराय माली खां में रहता थे। बेगम के महल का ड्योढ़ीदार थे।
सन 1784 में आसफुद्दौला के वक्त जब मशहूर अकाल पड़ा था। तो कितने ही किसान और मजदूर भूखों मरने लगे थे। ऐसे में गरीब जनता शीशमहल दौलतेखाने बाहर इकट्ठी होकर अपने शखीदाता के नाम की दुहाई देने लगी । रियाया के गुहार पर बेगम शम्सुन निशा को भी राजवधु होने के नाते महलसराए सुलतानी के बारजे पर चिलमन तक आना पड़ा । उनको मालूम हो चुका था कि आवाम को,
इस वक्त खाने पीने की तकलीफ उठानी पड़ रही है। अपने नीचे महल के खड़ी भीड़ का सलाम कबूल किया। ओर फरमाकर बड़े प्यार से पूछा कि ? क्या तुम लोग खाने में कुछ नहीं पाते हो ?आलम ने जवाब दिया मालकिन नहीं कुछ भी नहीं, ऊपर से फिर सवाल पूछा गया अरे क्या कुछ भी नहीं क्या हलवा और पूरी भी नहीं खा सकते ?
इतना सुनते ही भीड़ हाय दुहाई देकर रोने लगी और नवाब आसफुद्दौला ने फ़ौरन वहां से बेगम को रफा दफा करवा दिया। उसके बाद बड़े इमामबाड़े का नक्शा बनवाया जाने लगा, इस तरह से 22000 लोगो के रोजी रोटी का एक अजीब बंदोबस्त हुआ।
सुहाग उजड़ने के बाद अवध के प्रथम बादशाह गाजीउद्दीन हैदर के अहद में बेगम शम्सुन निशा प्रतापगंज की अपनी ही जागीर में रहती थी। इलाहाबाद में उनका इन्तेकाल हुआ फिर उन्हें लखनऊ लाकर दफनाया गया।
आप सुन रहे थे किस्सा नादान महल बेगम का
मेरे साथ
ख़ाकसार को rjali कहते है।