kashmir vivad के बारे में बताएं 2023
कश्मीर विवाद क्या है? कश्मीर की समस्या का मुख्य कारण आखिर क्या रहा और सरदार पटेल और उस समय के परधनमत्री नेहरू ने कैसे कश्मीर और सन 1948 में भारत पाक के पहले युद्ध में कैसे जीत हासिल किया?
कश्मीर
विवाद|
पिच्छले
लेख में हम भारत और पकिस्तान के मुद्दों और विवादों पर बात कर रहे थे और हमने बात
कि थी भारत और पकिस्तान के आजाद होने और देशी रियासतों का विलय होने के किस्से के
बारे में हमने आपने लेख में कश्मीर के विवाद पर विराम दिया था लेकिन आज हम अपने इस
लेख में भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद बने कश्मीर के बारे में बात करेगे | हमने
बताया था कि कैसे सरदार पटेल ने बाकी सभी रियासतों को कैसे भारत में मिलाया था |
जम्मू
कश्मीर विवाद कि वजहे :
जम्मू
और कश्मीर राज्य में मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी थी लेकिन जम्मू कश्मीर का जो राजा था
वह हिन्दू था महाराजा हरी सिंह | उत्तर भारत के इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 86,
024 वर्ग मील है और
इसको धरती पर स्वर्ग कहा जाता है | लेकिन दुर्भाग्यवश भारत और पाकिस्तान के आज़ादी
के बाद से ही कश्मीर विवाद कि वजह बना हुआ है | इसके पीछे का कारण था महाराजा हरी सिंह ने न तो
सन 15 agust 1947 से पहले और न ही तुरंत बाद दोनों में से किसी भी देश में शामिल होने
का निर्णय लिया | अंतिम निर्णय होने तक हरी सिंह ने पाकिस्तान के साथ एक यथास्तिथि
समझौते पर हस्ताक्षर किए | जिसको भारत ने स्वीकार नहीं किया | महाराजा कश्मीर को
एक स्वतंत्र देश घोषित करने कि योजना कर रहे थे | इसी बीच पाकिस्तान ने कश्मीर पर
पाकिस्तान में विलय होने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया | और आवश्यक चीजे कश्मीर
में पहुचने के लिए बाध्यताए पैदा करने लगा |
वायसराय
लार्ड माउंटबेटन का कश्मीर दौरा 1947:
इस
बीच वायसराय लार्ड माउंटबेटन का चार दिन का
दौरा कश्मीर पहुंचा और अपने इस चार दिन कि कश्मीर यात्रा पर उन्होंने राजा हरी
सिंह से चार बार अपने निर्णय को शीघ्र लेने के लिए कहा ताकि कश्मीर का विलय या तो
पाकिस्तान में हो जाये या फिर भारत में
समय रहते | लेकिन महारजा हरी सिंह ने परिस्थितियों को गमभीरता से न लिया और
वह अपने निर्णय को टालते रहे | जब माउन्ट बटन वापस दिल्ली आ रहे थे तो उन्होंने
बीमारी का बहाना करके निर्णय को टाल दिया जिसके चलते उस समय कश्मीर का विलय भारत
में न हो सका और न ही पाकिस्तान में |
इन्हें भी देखें ।
इंडिया और पकिस्तान के सम्बन्ध खराब होने के बाद भी आप पाकिस्तान की किन चीजों को खाते है?
माउंट
बेटन ने तो यह भी कहा कि यदि 14 augsut 1947 से पहले पकिस्तान में भी हो जाती तो भारत को कोई आपति नहीं थी इस से
क्यूंकि जायदातर आबादी मुस्लिम थी | सरदार पटेल का भी ऐसा ही विचार था | परन्तु
महाराजा हरी सिंह के फैलसा न लेने के चलते भारत और पकिस्तान के बीच एक अन्तराष्ट्रीय
विवाद क़ायम हुआ जिसको आज 75 साल हो चुके है |
कबाइलियो
का आक्रमण 1947:
कश्मीर पर पकिस्तान के समर्थन पर कबालियो ने
अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर हमला कर दिया इस हमले से पहले एक बार फिर पाकिस्तान ने
महाराजा हरी सिंह से उनको निर्णय लेने के लिए कहा लेकिन उन्होंने फैसला टाल दिया |
भारत और पकिस्तान दोनों के सीमा के लिहाज से कश्मीर का फैसला लेना काफी अहम् माना
जा रहा था लेकिन राजा हरी सिंह कोई निर्णय नहीं ले रहे थे | कबाइलियो ने ताबड़तोड़
हमले शुरू कर दिए पाकिस्तान के सीमांत प्रान्त के ये कबाइली अच्छी तरह से पशिक्षित
थे और पांच ही दिन में उन्होंने श्रीनगर से केवल पच्चीस किलोमीटर कि दुरी बारामुला
तक पहुँच गए | अकर्मण शुरू होने के बाद महाराजा हरी सिंह घबरा गए और भारत में विलय
होने कि प्राथना की|
भारत
ने 27 अक्टूबर को कशिर विलय कि प्राथना को स्वीकारा|
कश्मीर
पर कबाइलियो के हमले के बाद महाराजा हरी सिंह ने मन उनके पास दो ही रास्ते बचते है
, पहला ये था कि या तो कबाइलियो को कश्मीर कि जनता से लूट मार करने दे या फिर
दूसरा ये कि कश्मीर का भारत में विलय करवा के भारत से सुरक्षा ले ले | महाराजा के
यह प्राथना भारत ने 27अक्टूबर को स्वीकार कर ली और कश्मीर में शांति
बहाल के लिए भारत ने ओनी सेना भेज दी | आक्रमणकरियो को भागने के बाद भारत ने कश्मीर में जनमत संग्रह
करवाने कि बात कही | जिसपर जनता ने अपना मत भारत के पक्ष में रखा लेकिन इसे
पकिस्तान कभी नहीं स्वीकारा | पकिस्तान भारत से सीधा युद्ध कभी नहीं चाहता था
इसलिए उसने कश्मीर के मुद्दे को 1 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और यह आरोप
लगाया कि भारत ने कश्मीर को हड़प लिया है |
आजाद
कश्मीर क्या है ?
भारतीय
सैनिको ने आक्रमणकारियो से लगभग आधा क्षेत्र कबाइलियो के कब्जे से छुड़ा लिया था |
लेकिन युद्ध विराम होने कि स्तिथि में जो हिस्सा उनके कबाइलियो के अधिकार क्षेत्र
में था पकिस्तान ने वंहा आजाद कश्मीर कि स्थापना कर दी | इतने सालो बाद भी
ओअकिस्तान यही कहता है कि उसके कब्जे वाला परदेश आजाद है जिसे POK
भी कहा जाता है | जबकि राज्य का वह भाग जो भारत
प्रदेश का हिस्सा है उसको पकिस्तान भारत का वैध हिस्सा स्वीकार नहीं करता |
प्रधान मंत्री नेहरू कि गलती
नेहरू सरकार का यह प्रस्ताव कि जनमत संग्रह के द्वारा जनता कि इच्छा
मालूम कि जाये कि वह किसके साथ जाना चाहेगी यह एक गंभीर गलती थी | इस निर्णय के
चलते ही यह विवाद आज तक कायम है | 1 जनवरी 1949 को
युद्ध समाप्त होने के बाद हजारो जवान मारे गए | सुरक्षा परिषद ने काफी विवहार
विमर्श करने के बाद 20 जनवरी 1948 को तीन सदस्यों कि आयोग का गठन किया | इसमें भारत और पक्सितान से एक एक पर्तिनिध था
और तीसरा इन दोनों के द्वारा चुना जाना था जिस पर भारत ने अपने पक्ष में
चेकोस्लोवाकिया और पाकिस्तान ने अर्जेंटिना को अपना पर्तिनिधि नियुक्त किया | ये
दोनों तीसरे नाम पर सहमत नहीं जिसके चलते सुरक्षा परिषद् ने अमीरका को तीसरा सदस्य
बना दिया | इस आयोग को कश्मीर विवाद निपटारे का काम सौपा गया |बाद में सुरक्षा
परिषद् ने बेल्जियम और कोलम्बिया को भी इसका सदस्य बना दिया | और इस आयोग का नाम
रखा गया यूनाइटेड नेशन कमीशन फॉर इंडिया पकिस्तान कहलाया |
यूनाइटेड नेशन कमीशन फॉर इंडिया पाकिस्तान रिपोर्ट :
संयूक्त राष्ट्र आयोग ने जाँच पड़ताल कि , भारत और पकिस्तान
पर्तिनिधियो से बातचीत कि और 11 सितम्बर 1948 को अपनी
रिपोर्ट पेश कि | इसमें शांति बहाल करने के लिए अंतिम जनमत संग्रह करवाने के कुछ
पर्स्ताव किये गए |वे थे :
·
युद्ध समाप्ति के बाद जितना शीघ्र हो उतनी
जल्दी पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेना वापस बुला लेगा |
·
वह कबाइलियो और पाकिस्तानी नागरिको को कश्मीर
से बुलाने का प्रयास भी करेगा |
·
जो प्रदेश पाकिस्तानी सेना से खाली कारवाया
जाएगा , उसका प्रशासन आयोग स्थानीय अधिकारियो के द्वारा करवाएगा |
·
जब यह दोनों शर्ते पूरी हो जाएँगी और आयोग इसकी
सूचना भारत को देगा तो तब भारत अपनी सैनिको कि बड़ी संख्या को वापस बुला लेगा |
·
समझौता होने तक भारत और कानून और ववस्था बनाये
रखने के लिए सिमित संख्या में सुरक्षा बल कश्मीर में तैनात करेगा |
शुरू में पकिस्तान ने इन प्रस्तावो को मानने से
इनकार कर दिया | लेकिन बहुत समझाने बुझाने के बाद दोनों देशो ने युद्ध विराम
समझौते पर हस्ताक्षर किया और 1
जनवरी 1949 कि
मध्य रात्रि को युद्ध विराम हो गया |
युद्ध विराम रेखा को ही नियंत्रण रेखा कहा जाता
है जन्हा युद्ध बंद हुआ था | इसके अनुसार कशमीर का लगभग 32000वर्ग मील
क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में रह गया जिसे उसने आजाद कश्मीर का नाम दिया |राज्य
कि कुल 80 लाख जसंख्या में से सात लाख जनसख्या पकिस्तान
के कब्जे में रह गए | उसके बाद भी मैकनाटोंन योजना , डिक्सन प्रस्ताव , ग्रैहम
मिशन जैसे कई आयोग का गठन होने के बाद भी विवाद जैसा का तैसा ही बना है |