अकबर इलाहाबादी: उर्दू कवि
अकबर इलाहाबादी यूं तो किसी पहचान के मोहताज नही है, लेकिन मैने आज के इस सफर में उनकी खुशमिजाजी और जिंदगी के अपने सफर और उसके धूप छांव के फलसफे को जिस तरह से ने उर्दू जुबान में हमारे सामने रखा वो बेहद ही लाजवाब है, उनका अंदाजे बयां मेरे दिल को खूब रास आता है, जब किसी टीवी या फिल्म उनके कलाम को सुनता हु। उनकी बेहद ही खूबसूरत गजल है सांस लेते हुए भी डरता हूं जो मुझे काफ़ी पसंद है।
अकबर इलाहाबादी (Akbar Allahabadi), जिनका जन्म 16 नवंबर 1846 को इलाहाबाद, ब्रिटिश भारत (अब प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) में हुआ था, एक मशहूर उर्दू कवि और विदुषी थे। उनका जन्म ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुआ था, और उन्होंने अपनी गजलों में समाजिक और राजनीतिक मुद्दों को सराहा।
अकबर इलाहाबादी की गजलें उनकी भावनाओं और समस्याओं को सुंदरता के साथ व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने महसूस किया और व्यक्त किया कि समाज में विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच बांटवारा और सामाजिक न्याय की कमी है। उनकी गजलों में आवाज़ उठती है, और वे आम आदमी की आवाज़ को सुनाने का काम करते हैं।
अकबर इलाहाबादी के कुछ प्रसिद्ध गजलें उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक चिंताओं को बयान करती हैं और उनकी अद्भुत शैली ने उन्हें एक महान कवि बना दिया। उनका योगदान उर्दू साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और उनकी गजलों का महत्व आज भी बना हुआ है।
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
ये न समझें कि आह करता हूँ
बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हबाब
मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ
इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है
साँस लेता हूँ बात करता हूँ
शैख़ साहब ख़ुदा से डरते हों
मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ
आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज .
शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ
ये बड़ा ऐब मुझ में है 'अकबर'
दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ
सप्तरणी ट्री बागवानी के लिए खास पेड़।
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